कोन निष्कर्ष पर पहुंचबह? लक्ष्मीनाथ गोसांइ के खोज लक्ष्मीनाथ गोसांइ के खोज मे लागल छी।
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जैसे यह, हिन्दी का अभ्यास, अपने को एक दो और चीज़ें सिखा सकती हूँ, यह नौकरी के खोज मे निकालूं।
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कहानी आगे बढ़ती है जब इंदिरा व शालिनी साथ मिलकर उन्हें जीवन में क्या चाहिए के खोज मे ंनिकलती हैं।
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जैसे यह, हिन्दी का अभ्यास, अपने को एक दो और चीज़ें सिखा सकती हूँ, यह नौकरी के खोज मे निकालूं।
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जैसे यह, हिन्दी का अभ्यास, अपने को एक दो और चीज़ें सिखा सकती हूँ, यह नौकरी के खोज मे निकालूं।
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मे कल्कि अवतरित हो य नहि पर हमरे भग्वान श्री राम जरुर अव्तार लेंगे और राबन के खोज मे उन्हे दूर लंका नही जन होगा वे प्रभु
8.
विशेषकर यह बात लड़कियो के लिये लागु होती है, एक पीढ़ी दुसरी पीढ़ी को अपने “मै” के खोज मे आगे नही बढ़ने नही देती, उन्हे हमेशा ना जाने किस समाज का भय खाये रहता है, वो भूल जाती हैं कि, जिस समाज मे “मै”(अस्तित्व) ना हो उसके साथ जीना ही कितना आधारविहीन है, और फिर कोई “मै” इस समाज को मानने से इंकार कर देता है तो उसे आसामाजिक तत्व का तगमा दे दिया जाता है या पतित कह दिया जाता है।
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विशेषकर यह बात लड़कियो के लिये लागु होती है, एक पीढ़ी दुसरी पीढ़ी को अपने “ मै ” के खोज मे आगे नही बढ़ने नही देती, उन्हे हमेशा ना जाने किस समाज का भय खाये रहता है, वो भूल जाती हैं कि, जिस समाज मे “ मै ” (अस्तित्व) ना हो उसके साथ जीना ही कितना आधारविहीन है, और फिर कोई “ मै ” इस समाज को मानने से इंकार कर देता है तो उसे आसामाजिक तत्व का तगमा दे दिया जाता है या पतित कह दिया जाता है।